जिसमें इज़हार एक ख़ामोशी हो,
प्यार एक समर्पण का भाव हो।
कभी प्रेम को न पाने की चाह हो,
दूर से बस निहारने की राह हो।
न कोई रिश्ता हो,
न कोई नाता हो।
बस एक सुकूँन हो,
जो दोनों को समझ आता हो।
रास्ते औऱ मंजिल दोनों बेशक अलग हो,
सफ़र में बस एक दूसरे की खुशियों का नाम आता हो।
है काल्पनिक मग़र असली रूप यही हो,
प्रेम का सच्चा स्वरूप भी यही हो ।
#Abhiwrites❣
Muskan khan
09-Dec-2022 06:18 PM
Superb
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Sachin dev
09-Dec-2022 05:36 PM
Well done
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Kavita Gautam
09-Dec-2022 04:51 PM
बेहद खूबसूरत भाव के साथ लिखा है आपने।
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